Tuesday, May 29, 2012

जनसत्ता,और जनपथ की आवाजाही --------------
ओम जी ने क्या कहा ,मंगलेश डबराल से कहाँ चूक हुई ,'आवाजाही' में कौन किस् से टकराया हमें नहीं मालुम .फेस बुक पर प्रो.राकेश सिन्हा का लंबा आलेख पढ़ा .प्रो. सिन्हा ने 'संघ' के बारे में ,उसके बचाव में और साम्यवादियों की हरकतों पर खुली टिप्पणी की है ....
     मै व्यक्तिगत रूप से ओम थानवी और मंगलेश डबराल को जानता हूँ .और जब 'जानने की बात करता हूँ तो उसका मतलब महज मेल मिलाप से नहीं होता .जेहनी तौर पर वो कहाँ है इससे हम वाकिफ हैं .प्रो.साहिब आपकी भाषा में कहें तो ये लोग ' कुजात ' हैं .इनके पास नतो कोइ सगठित गिरोह है न ही उसकी उकसाऊ तमीज ,इंसान के हक और हुकूक की बात करनेवाले ये लोग अपने तर्क पर खड़े हैं ,ये लोग पुरुषार्थवादी हैं ,अनुदान भोगी नहीं .सिन्हा साहिब ये बाते आपको अजीब लगेगी लेकिन इनका खुलना भी जरूरी है ,आप कहते हैं की डबराल को आपने बुलाया ,जनाब इसका मतलब साफ़ है की कुछ सोच कर ही आपने बुलाया होगा ,कल को यह कहने के लिए की देखिये हम 'अछूत' नहीं हैं हमारी पांत में डबराल साहिब भी बैठ चुके हैं . ( यह बात इस लिए कह रहा हूँ की आपने अपने आलेख में कई जगह कई बार उन नामो का जिक्र किया है जिन्होंने गाहे ब गाहे आपको अपने बगल में चलने की अनुमति दे दी .. उदाहरण के लिय आपने जे.पी. का जिक्र किया .) बहार हाल ....सिन्हा साहिब ! आप साम्यवादियों को जब 'गरिया' रहें थे मै बड़े गौर से उस हिस्से को निहार रहा था जिसे आप छुपा रहें थे .आपने साम्यवादियों को जो कुछ भी सुनाया वो सब आप पर भी तो लागू होते हैं .... आप अतीत की चर्चा कर रहें थे .किस तरह से एक साम्यवादी ने डांगे साहब को जन्म दिन पर बधाई दी और उसे पार्टी से निकाल दिया गया .संघ ने क्या किया है ? आप को तो याद होगा जनसंघ आज भी ज़िंदा है और उसके अध्यक्ष बलराज माधोक  को आज तक तन्हाई मिली हैकि उसने भी यही गलती की थी .अडवानी और जसवंत सिंह के साथ क्या हुआ था ? महज इतना ही न की उन्होंने जिन्ना को सेकुलर कह दिया ? आपका आरोप सही है सिन्हा साहिब की साम्यवादियों की नीति और नियति जनतंत्र और बोलने की आजादी की कटती नहीं है .लेकिन संघ भी तो उसी  तानाशाही काहामी है .रास्ते भले ही अलग हों आप अपने को 'विश्व' कहते हैं वो अपने को 'अंतर्राष्ट्रीय ' कहते हैं उनके हर फैसले 'अगल; 'बगल' से हो ते हैं आपके 'पीछे से '...भारत की आजादी देश के लिए ही नहीं दुनिया के लिए बड़ी घटाना थी आप दोनों पैदा हो चुके थे ,जवान हो चुके थे .आप दोनों ने बराबर का पाप किया है आजादी की लड़ाई के विरोध में खड़े होकर अंग्रेजो का साथ देना ,फिर भारत के बटवारे बटवारे का समर्थन करना किसी से छुपा नहीं है .
       सिन्हा साहिब आप तो पढ़ने में औव्वल रहें है .आपने संघ को पढ़ने ही ज्यादा जोर दिया है .आपने समाजवादियों और नेहरु के रिश्ते पर गलत तर्क पेश कर दिया आप जहां बैठे हैं 'तीन मूर्ती ' में वहाँ दस्तावेज है एक बार पलट कर देख लीजिए डॉ लोहिया और जे.पी. के बीच मत भेद है मन भेद नहीं है और मतभेद का कारण केरल में बनी पहली समाजवादी सरकार को लेकर है थानू पिल्लई की सरकार ने मजदूरों पर गोला बारी की थी डॉ लोहिया ने सरकार से स्तीफा माग लिया था ..अंत में आपने जे. पी आंदोलन  की चर्चा की . उस आंदोलन में भाग लेना आपकी मजबूरी थी ,मन नहीं था .जन  दबाव में आपने जे. पी के कंधे का सहारा लिया .आपको याद है यहाँ आपने एक बार फिर साम्यवादियों की तरह तानाशाही (आपातकाल ) का समर्थन किया ..बीस नहीं चौबीस शूत्रिय कार्य क्रम का समर्थन कर के ..
       सिन्हा साहिब ! आपको शुक्रिया कहता हूँ ,आपके ही बहाने कम से कम संघ खुले मंच पर तो आये .एक बात भूल रहा था .. नाथू राम के सवाल पर आपने चालाकी से अपने आपको बचाया और एक 'महिला' ने आपको गले से लगा लिया /इसका दूसरा रुख भी है .संघ ने कभी नाथूराम के इस कायरता पूर्ण हरकत की खुले शब्दों में निंदा भी की है ..?
        सिन्हा साहिब हम आप से कहीं मिले हैं,    नमस्कार .  

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